TopHindiLyrics present Moral Stories in Hindi for Kids – हिंदी नैतिक कहानियाँ – Collection 1. Topmost popular Short Hindi Moral Stories for kids with pictures.
Here, I am writing Top 10 Hindi Moral Stories for Kids (Kahaniyan). It will be helpful for teachers of any class as well as parents for their children. And also it will add some moral values in our life. I hope you will like this Hindi Stories collection.
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Contents
Top 10 Moral Stories in Hindi
टोपीवाला और बंदर

दो छोटे छोटे गाँव थे। दोनो गाँवो के बीच एक जंगल था। इस जंगल में बहुत सारे बंदर रहते थे। एक दिन एक टोपी वाला टोपियाँ बेचने के लिए इस जंगल से होकर जा रहा था। वह चलते चलते थक गया था। उसने अपना टोपियों से भरा संदूक एक पेड़ के नीचे रखा। और वहाँ बैठकर आराम करने लगा। थोड़ी देर बाद उसे नींद आ गई। जब टोपी वाले की नींद खुली तो वह चौंक कर उठा। उसका संदूक खुला था और सारी टोपियाँ गायब थी।
इतने में उसे बंदरो की आवाज सुनाई दी। उसने ऊपर देखा उस पेड़ पर बहुत सारे बंदर थे। सभी बंदरो ने सर पर टोपिया पहनी हुई थी। टोपीवाले को बहुत गुस्सा आया। उसने पत्थर उठा उठा कर बंदरो को मारना शुरू किया। उसकी नकल करते हुए बंदरो ने भी पेड़ से फल तोड़कर टोपीवाले की ओर फेकने शुरू किया। अब टोपीवाले को समझ में आ गया कि बंदरो से टोपियाँ कैसे वापस ले सकता है। टोपीवाले ने अपने सर से टोपी उतारी और उसे जमीन पर फेंक दी।
नकलची बंदरो ने यह देखा तो उन्होने भी अपने सर की टोपियों को उतारकर फेंकना शुरू कर दिया। टोपीवाले ने जल्दी जल्दी टोपियाँ इकट्रठी की संदूक में रखी और खुशी खुशी दूसरे गाँव की ओर चल पड़ा।
नैतिक शिक्षा – सूझबूझ से ही हम कठिनाइयों से पार पा सकते है
एकता का बल

एक किसान था। उसके पाँच बेटे थे। सभी बलवान और मेहनती थे। पर वे हमेशा आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। किसान यह देख कर बहुत चिंतित रहा करता था। वह चाहता था कि उसके बेटे आपस में लड़ाई-झगड़ा न करें और मेलजोल से रहें। किसान ने अपने बेटों को बहुत समझाया और डाँटा-फटकारा भी, पर उनपर इसका कोई असर नहीं हुआ।
किसान को हमेशा यही चिंता सताती रहती कि वह अपने बेटों में एकता कैसे कायम करे! एक दिन उसे अपनी समस्या का एक उपाय सूझा। उसने अपने पाँचों बेटों को बुलाया। उन्हें लकडि़यों का एक गट्ठर दिखाकर उसने पूछाँ, “क्या तुममें से कोई इस गट्ठर को खोले बिना तोड़ सकता है?”
किसान के पाँचों बेटे बारी-बारी से आगे आए। उन्होंने खूब ताकत लगाई। पर उनमें से कोई भी लकडि़यों का गट्ठर तोड़ नही सका। फिर किसान ने गट्ठर खोलकर लकडि़यों को अलग-अलग कर दिया। उसने अपने बेटों को एक-एक लकड़ी देकर उसे तोड़ने के लिए कहा। सभी लड़कों ने बहुत आसानी से अपनी-अपनी लकडी तोड़ डाली।
किसान ने कहा,”देखा! एक-एक लकड़ी को तोड़ना कितना आसान होता है। इन्हीं लकडि़यों को एक साथ गट्ठर में बाँध देने पर ये कितनी मजबूत हो जाती हैं। इसी तरह तुम लोग मिल-जुल कर एक साथ रहोगे, तो मजबूत बनोगे और लड़ झगड़कर अलग-अलग हो जाओगे, तो कमजोर बनोगे।”
नैतिक शिक्षा – एकता में ही शक्ति है, फूट में ही है विनाश।
हँसमुख सरदार

बहुत दिनों की बात है। एक बहादुर सरदार था। उसने अनेक लड़ाइयाँ लड़ी थीं और उनमें अपनी असाधारण वीरता का परिचय दिया था। वह एक मँजा हुआ तलवारबाज और कलाबाज घुड़सवार था। इतना ही नहीं, वह दिल का भी बहुत उदार था। वह सदा गरीबों और जरूरतमंद लोगों की सहायता किया करता था। असहाय लोगों की रक्षा करना वह अपना कर्तव्य समझता था। लोग उसे सच्चे दिल से प्यार करते थे। वे उसकी अच्छाइयों का गुणगान करते और उसका बहुत सम्मान करते थे।
पर इस सरदार के बारे में एक रहस्य की बात थी, जो किसी को मालूम नहीं थी। यहाँ तक की उसके घनिष्ठ मित्रों तक को भी इसका पता नहीं था। सरदार बिल्कुल गंजा था। अपने गंजेपन को छिपाने के लिए वह बालों की टोपी पहना करता था। यह टोपी उसके सिर पर इस प्रकार बैठ जाती थी कि उसके गंजेपन के बारे में किसी को रंचमात्र भी शंका नहीं होती थी।
एक बार सरदार अपने कुछ मित्रों के साथ जंगल में शिकार खेलने गया। वे अपने घोड़ों को सरपट दौड़ाते जा रहे थे कि तभी अकस्मात बड़े जोरो की आँधी आई और सरदार की बालों की टोपी उड़कर दूर जा गिरी। सरदार के गंजेपन का रहस्य खुल गया।
सरदार के मित्र उसकी गंजी खोपड़ी देखकर दंग रह गए। उन्हें सपने में भी यह ख्याल नहीं था कि उनका हँसमुख सरदार गंजा है। वे ठठाकर हँस पड़े। उन्होंने कहा, “वाह, आपका सिर तो अंडे़ की तरह सफाचट है। आप हमेशा अपने आप को जवान साबित करते रहे और हमें बेवकूफ बनाते रहे!”
“हाँ, मैं हमेशा अपना गंजापन छिपाने का प्रयास करता रहा। पर मुझे मालूम था कि एक दिन मेरा यह राज खुलकर रहेगा। जब मेरे अपने बालों ने मेरा साथ नहीं दिया तो दूसरों के बाल मेरे सिरपर सदा के लिए कैसे रह सकते हैं?” यह कहकर सरदार हो, हो करता हुआ खिलखिलाकर हँस पड़ा।
जब सरदार के मित्रों ने देखा कि वह स्वयं अपने आपपर हँस रहा है, तो वे उस पर हँसने के कारण बहुत शर्मिंदा हुए। उन्होंने सरदार से कहा, “सरदार, आप वाकई बहुत दिलदार हैं।”
नैतिक शिक्षा – जो अपने पर हँस सकता है, वह कभी हँसी का पात्र नहीं बन सकता।
साहूकार का बटुआ

एक बार एक ग्रामीण साहूकार का बटुआ खो गया। उसने घोषणा की कि जो भी उसका बटुआ लौटाएगा, उसे सौ रूपए का इनाम दिया जाएगा। बटुआ एक गरीब किसान के हाथ लगा था। उसमें एक हजार रूपए थे। किसान बहुत ईमानदार था। उसने साहूकार के पास जाकर बटुआ उसे लौटा दिया।
साहूकार ने बटुआ खोलकर पैसे गिने। उसमे पूरे एक हजार रूपये थे। अब किसान को इनाम के सौ रूपए देने मे साहूकार आगापीछा करने लगा। उसने किसान से कहा, “वाह! तू तो बड़ा होशियार निकला! इनाम की रकम तूने पहले ही निकाल ली।”
यह सुनकर किसान को बहुत गुस्सा आया। उसने साहूकार से पूछा, “सेठजी, आप कहना क्या चाहते हैं?”
साहूकार ने कहा, “मैं क्या कह रहा हूँ, तुम अच्छी तरह जानते हो। इस बटुए में ग्यारह सौ रूपए थे। पर अब इसमें केवल एक हजार रूपये ही हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि इनाम के सौ रूपए तुमने इसमें से पहले ही निकाल लिये हैं।”
किसान ने कहा, “मैंने तुम्हारे बटुए में से एक पैसा भी नहीं निकाला है। चलो, सरपंच के पास चलते हैं, वहीं फैसला हो जाएगा।”
फिर वे दोनों सरपंच के पास गए। सरपंच ने उन दोनों की बातें सुनीं। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि साहूकार बेईमानी कर रहा है।
सरपंच ने साहूकार से कहा, “आपको पूरा यकीन है कि बटुए में ग्यारह सौ रूपए थे?”
साहूकार ने कहा, “हाँ हाँ, मुझे पूरा यकीन है।”
सरपंच ने जवाब दिया, “तो फिर यह बटुआ आपका नहीं है।”
और सरपंच ने बटुआ उस गरीब किसान को दे दिया।
नैतिक शिक्षा – झूठ बोलने की भारी सजा भुगतनी पड़ती है।
चतुर बीरबल

एक दिन अमीर आदमी बीरबल के पास आया। उसने बीरबल से कहा, “मेरे यहाँ सात नौकर हैं। उनमे से किसी ने मोतियो से भरा मेरा बटुआ चुरा लिया है। कृपया आप मेरी मदद कीजिए। और उस चोर को खोज निकालिए।”
बीरबल उस अमीर के घर गए। उन्होने सातो नौकरो को एक कमरे मे बुलाकर कहा, “देखो! मेरे पास सात जादुई छडि़याँ है। इस समय इन सभी छडि़यो की लम्बाई समान है। मैं तुममे से हर एक को एक एक छड़ी देता हूँ। तुममे से जिसने चोरी की होगी उसकी छड़ी बढ़ जाएगी।”
जिस नौकर ने बटुआ चुराया था वह बीरबल की बात सुनकर बहुत भयभीत हो गया। उसने सोचा! “मैं अपनी छड़ी काटकर एक इंच छोटी कर देता हूँ। तो बच जाऊँगा!” अंत में उसने अपनी छड़ी काटकर एक इंच छोटी कर दी अगले दिन बीरबल ने एक एक कर सातो नौकरो की छडि़याँ देखी। उनमे से एक की छड़ी एक इंच छोटी थी बीरबल उसकी ओर उगँली से इशारा करते हुए बोले, ये रहा चोर! यह सुनते ही उस नौकर ने अपना अपराध स्वीकार किया उसने मोतियों से भरा बटुआ अपने मालिक को लौटा दिया। फिर उसे जेल भेज दिया गया।
चार मित्र

एक गाँव में चार मित्र रहते थे। उनमें से तीन बहुत ही विद्वान थे। पर वे व्यावहारिक ज्ञान की दृटि से एकदम कोरे थे।
चोथा मित्र पढ़ा-लिखा तो कम था, पर वह व्यावहारिक ज्ञान में माहिर था।
एक बार चारों मित्र अपना-अपना भाग्य आजमाने राजधानी की ओर चल पड़े़। रास्ते में एक जंगल आया। वहाँ उन्हें एक पेड़ के नीचे कुछ हड्डियाँ दिखाई दी। उनमें से एक व्यक्ति ने उन हड्डियों का निरक्षण करते हुए कहा, ये हड्डियाँ किसी शेर की हैं। इन हड्डियों को एकत्र कर मैं अपनी विद्या से मरे हुए शेर का कंकाल तैयार कर सकता हूँ।
दूसरे विद्वान ने कहा, मैं अपने ज्ञान के बल से उस कंकाल पर मांस चढ़ा कर एवं रक्त से भरकर उसे खाल से ढक सकता हूँ। तीसरे विद्वान ने कहा, मैं अपनी विद्या से इस निर्जीव प्राणी को जीवित कर सकता हूँ।
व्यावहारिक ज्ञान में माहिर चैथे मित्र को अपने तीनों मित्रों की बातें सुनकर बड़ा आश्र्चय हुआ। उसने अपने विद्वान मित्रों को सावधान करते हुए कहा, मित्रो, शेर को जीवित करना खतरे से खाली नहीं होगा।
यह सुनकर पहले विद्वान ने कहा, अरे, यह तो मूर्ख है! इस बेवकूफ को हमारे ज्ञान से ईष्र्या हो रही है।
दोनो विद्वान मित्रों ने भी उसका समर्थन किया। यह देखकर वह समझदार व्यक्ति दौड़कर एक पेड़ पर चढ़ गया। तीनों विद्वान मित्रों ने अपने-अपने ज्ञान का प्रयोग करना शुरू कर दिया।
पहले विद्वान ने सारी हड्डियाँ एकत्र कर उसका कंकाल तैयार किया। दूसरे विद्वान ने कंकाल पर मांस चढ़ाकर वे रक्त से भरकर उसे खाल से ढ़क दिया।
तीसरे ने अपनी विद्या का प्रयोग कर उस निर्जीव शेर में जान डाल दी। जान आते ही शेर दहाड़ता हुआ खड़ा हो गया और तीनोंपर टूट पड़ा। तीनों विद्वान वहीं ढेर हो गए।
व्यावहारिक ज्ञान एवं सूझबझ के कारण चोैथे मित्र की जान बच गई।
नैतिक शिक्षा – ज्ञान का अव्यावहारिक उपयोग बड़ा ही खतरनाक होता है।
सम्राट और बूढ़ा आदमी

जापान के एक सम्राट के पास बीस सुंदर फूलदानियों का एक दुर्लभ संग्रह था। सम्राट को अपने इस निराले संग्रह पर बड़ा अभिमान था। एक बार सम्राट के एक सरदार से अकस्मात एक फूलदानी टूट गई इससे सम्राट को बहुत गुस्सा आया उसने सरदार को फाँसी का आदेश दे दिया। पर एक बूढ़े ब्यक्ति को इस बात का पता चला वह सम्राट के दरबार में हाजिर हुआ। और बोला, “मै टूटी हुई फूलदानी जोड़ लेता हूँ मै उसे इस तरह जोड़ दूगाँ कि वह पहले जैसी दिखाई देगी।” बूढ़े की बात सुनकर सम्राट बड़ा खुश हुआ। उसने बूढ़े को बची हुई फूलदानियो को दिखाते हुए कहा, “ये कुल उन्नीस फूलदानियाँ है। टूटी हुई फूलदानी इसी समूह की है। अगर तुमने टूटी हुई फूलदानी जोड़ दी तो मैं तुम्हे मुँह माँगा इनाम दूँगा।” सम्राट की बात सुनते हुए बूढ़े ने लाठी उठाई और तड़ातड़ सभी फूलदानियाँ तोड़ दी।
यह देखकर सम्राट गुस्से से आग बबूला हो गया। उसने चिल्लाकर कहा, “बेवकूफ तूने यह क्या किया। बूढ़े आदमी ने सहजभाव से उत्तर दिया। महाराज मैंने अपना कर्तव्य निभाया है। इनमे से हर फूलदानी के पीछे एक आदमी की जान जानेवाली थी। मगर आप केवल एक आदमी की जान ले सकते हैं। सिर्फ मेरी!”
बूढ़े आदमी की चतुराई और हिम्मत देखकर सम्राट प्रसन्न हो गया। उसने बूढ़े आदमी और अपने सरदार दोनो को माफ कर दिया।
नैतिक शिक्षा – बुराई से लड़ने के लिए एक ही साहसी व्यक्ति काफी होता है।
चार मूर्ख

एक जंगल मे एक ऊँचे पेड़ पर एक काली चिडि़या रहती थी। जब वह गाती तो उसकी चोंच से सोने के दाने झड़ते थे। संयोग से एक दिन एक बहेलिए की नजर उस पर पड़ गयी। चिडि़या के मुँह से सोने के दाने झरते देख वह फूला नही समाया उसने मन ही मन कहा, “वाह! कितनी अच्छी तकदीर है मेरी! मैं इस चिडि़या को पकड़ कर अपने घर ले जाऊँगा। यह मुझे रोज सोने के दाने देगी। मैं धनवान हो जाऊँगा।”
फिर बहेलिए ने चिडि़या को पकड़ने के लिए उसने जमीन पर अपना जाल फैलाकर उस पर चावल के कुछ दाने बिखेर दिए। काली चिडि़या दाने चुगने नीचे उतरी और जाल मे फँस गई। बहेलिए ने चिडि़या को पकड़ लिया फिर उसे वह अपने घर ले गया। उस दिन से बहेलिए को रोज सोने के दाने मिलने लगे। देखते देखते वह अमीर आदमी बन गया। उसने सोचा! कि उसे कुछ प्रसिद्धि और सम्मान मिलना चाहिए। इसलिए उसने चिडि़या के लिए सोने का पिजड़ा बनवाया। फिर उसने वह चिडि़या राजा को भेंट कर दी। उपहार देते हुए राजा से कहा। महाराज!, “यह चिडि़या आपके महल मे मधुर गीत गाएगी। आपको सोने के कुछ दाने भी देगी।” यह उपहार पाकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने बहेलिए को अपने दरबार मे ऊँचा ओहदा दिया। जल्द ही राजा के पास ढेर सारे सोने के दाने जमा हो गए राजा ने वह सोने की चिडि़या रानी को भेंट कर दी। रानी ने पिंजड़े का दरवाजा खोलकर चिडि़या को आजाद कर दिया और सोने का पिजड़ा शाही सुनार को देकर कहा। इस सोने के पिजड़े से मेरे लिए सुंदर सुंदर गहने गढ़ दो।
चिडि़या उड़ती हुई वापस जंगल मे चली गई। अब रोज सबेरे वह चार मूर्खो का गाना गाने लगी।
पहली मूर्ख मैं थी। जो बहेलिए के जाल में फंसी।।
दूसरा मूर्ख बहेलिया था। जिसने मुझे राजा को भेंट कर दिया।।
तीसरा मूर्ख राजा था। जिसने मुझे रानी को दे दिया।।
चौथी मूर्ख रानी थी। जिसने मुझे आजाद कर दिया।।
फलवाला और पंसारी

एक बार एक पंसारी ने एक फलवाले से उसका तराजू और बाट उधार लिए कुछ दिनो बाद फलवाले ने पंसारी से अपने तराजू और बाट वापस मागें पंसारी ने कहा, “कैसा तराजू और बाँट उन्हे तो चूहा खा गया इसलिए मुझे खेद है कि मै उन्हे लौटा नही सकता।”
बेईमान पंसारी की बात सुनकर फल वाले को बहुत गुस्सा आया पर उसने गुस्से को दबाते हुए कहा, “कोई बात नही मित्र! इसमे तुम्हारा कोई दोष नही है मेरी तकदीर खराब है।”
उसके बाद एक दिन फलवाले ने पंसारी से कहा,”देखो! मैं कुछ समान लेने बाहर जा रहा हूँ तुम चाहो तो मेरे साथ अपने बेटे को भेज सकते हो हम लोग कल तक वापस आ जाएगें।”
पंसारी ने बेटे को फलवाने के साथ भेज दिया दूसरे दिन फलवाला लौटा तो वह अकेला था।
अरे! मेरा बेटा कहाँ है? पंसारी ने पूछा,
“क्या बताऊँ तुम्हारे बेटे को सारस उठा ले गया फलवाले ने जवाब दिया!”
“अबे झूठे इतने बड़े लड़के को सारस कैसे उठा ले जा सकता है” पंसारी ने गुस्से से कहा, फलवाले ने जवाब दिया, “उसी तरह जैसे चूहे तराजू और बाँट खा सकते हैं।” पंसारी को अपनी भूल समझ मे आई उसने फलवाले का तराजू और बाट वापस कर दिया वह अाँसू भरी आँखो से बोला, “भाई! मैंने तुम्हारे साथ छल किया मुझे माफ कर दो और मेरा बेटा मुझे लौटा दो।” फलवाले ने पंसारी के बेटे को उसके पिता के पास लौटा दिया।
मूर्ख और ठग

एक गाँव में एक मूर्ख आदमी रहता था गाँव के छोटे छोटे बच्चे उसका मजाक उड़ाते थे। वह लाख चतुर बनने की कोशश करता पर कोई न कोई उसे मूर्ख बनाता रहता।
एक दिन वह अपने घोड़े और बकरी बेचने बजार जा रहा था वह घोड़े पर सवार था उसने बकरी के गले मे घंटी बाँध रखी थी रस्सी का एक हिस्सा बकरी के गले मे दूसरा हिस्सा घोड़े की पूँछ से बाँध रखा था।
मूर्ख को जानने वाले कुछ ठग उसका पीछा कर रहे थे उनमे से एक ठग ने बकरी के गले से घंटी खोलकर घोड़े की पूँछ में बाँध दी इसके बाद बकरी को लेकर रफूचक्कर हो गया, घोडे़ की पूँछ पर बँधी घंटी बजती रही और मूर्ख यही समझता रहा कि बकरी उसके पीछे पीछे आ रही है थोड़ी देर बाद दूसरा ठग आया उसने मूर्ख को रोककर पूँछा, “भाई साहब आपने अपने घोड़े की पूँछ में यह घंटी क्यों बाँध रखी है।” उस मूर्ख ने पीछे मुड़कर देखा तो बकरी नदारद थी उसे बड़ा ताज्जुब हुआ।
तभी तीसरा ठग आ पहुँचा उसने मूर्ख से कहा, “मैंने अभी देखा है कि एक आदमी तुम्हारी बकरी को लिए भागा जा रहा है अगर तुम मुझे अपना घोड़ा दे दो तो मैं उसका पीछा करके तुम्हारी चुराई गई बकरी वापस ला सकता हूँ!”मूर्ख तुरंत घोड़े पर से उतर पड़ा और उसने घोड़ा तीसरे ठग के हवाले कर दिया। वह मूर्ख को चिढ़ाता हुआ घोड़े को लेकर सरपट भाग गया बेचारा मूर्ख बहुत देर तक अपने पशुओ को पाने का इंतजार करता रहा पर जब वह राह देखते देखते थक गया और ठग लौट कर नही आया तो वह खाली हाथ ही घर वापस लौट आया।
दूर कहीं घंटी बजती रही और तीनो ठग गाते रहे,
घंटी घंटी बजती रहो,
रातोदिन गाती रहो,
जीवन एक खेल है सुनहरा।
नैतिक शिक्षा – मूर्ख की तकदीर कभी लंबे समय तक उसका साथ नही देती
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Mr Banna
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